याद रखे हर रोग का रास्ता पेट से गुजरता है।
सिद्ध गैस हरण कल्पचूर्ण
सिद्ध गैस हरण कल्पचूर्ण के लाभ
पेट की सूजन ,गैस, जलन, अफारा, पेट दर्द, भूख की कमी, खाया पिया हजम न हो,गैस कारण स्वास फूलना, कब्ज, स्वास नली में जलन, भोजन का स्वास नली में आना, अम्लपित्त रोग, कब्ज वाली बवासीर, पेट की खुश्की और मूत्र जलन में लाभदायक।
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कैसे बनाया जाता है गैस हरण कल्पचूर्ण
मलेठी 10 ग्राम,सोंठ भुनी ,अजवायन,इंद्रयाण, हरड़, बहेड़ा, आँवला, डिकामाली,शरपुंखा ,अकरकरा,वच ,मकरध्व,हिंग भुनी कुलंजन,सुगंधबाला
सभी 5-5 ग्राम।
जायफल,बदियाण,बाबूना ,पीपल ,लौंग, दालचीनी ,केसर ,तेजपत्ता ,शीतल चीनी,जटामांसी,अरण्ड बीजधतूरा पत्ते ,अड़ूसा,कचनार,गन्ध प्रसारिणी - सभी 4-4 ग्राम*
विष्णुकान्ता,विष्णुकान्ता,दोना,वरना,तस्तुम्बे,एलुआबालछड़,तालसी,अरणी,मरोड़फली सभी 2-2 ग्राम4 नमक 10 -10 ग्राम*।
सभी को कूटपीसकर चुर्ण बनाए और 100 गिलोय रस में अगर भावना देते हैं तो डबल असर करेगी।
सेवन विधि- 2 ग्राम सुबह खाने के बाद गर्म पानी से ले। ऐसे ही शाम को भी गर्म पानी से इस्तेमाल करे। छोटे बच्चों को चुटकी भर दे।
नोटः कुछ दिन सिद्ध गैस हरण कल्पचुर्ण साथ रखे जब भी गैस या जलन महसूस हो 2 चुटकी मुँह में डालकर चूसते रहे। 1 मिनट में गैस जलन से होगी मुक्ति।
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गैस बनने पर क्या क्या होता है
कभी-कभी भूख न लगना, गलत-खान पान और लापरवाही आदि के कारण पेट में दूषित वायु इकट्ठी हो जाती है, जो आध्यमान या अफारा को पैदा करती है, इसके परिणामस्वरूप पेट की नसों में खिंचाव महसूस होने लगता है।
ऐसी अवस्था में मरीज बेचैन हो उठता है। पेट फूलने लगता है। जब यह गैस (अफारा) ऊपर की ओर बढ़ने लगती है तो हृदय पर दबाब बढ़ता है जिससे घबराहट सी महसूस होती है। जिस कारण हिर्दय अटैक भी हो जाता है।
यह गैस जब पेट में काफी समय तक रुक जाती है तो पेट में काफी दर्द करती है, जिसे अफारा या पेट में गैस का बनना कहते है।
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लक्षण :रोगी को क्या महसूस होता है
आध्यमान (अफारा) या वायु के इकट्ठा होने से पेट में दर्द, जी मिचलाना, श्वास (सांस) लेने में कष्ट के साथ ही रोगी को बहुत घबराहट होती है। छाती में जलन होती है। दूषित वायु जब ऊपर की ओर चढ़ती है तो सिर में दर्द होने लगता है, रोगी को चक्कर आने लगते हैं। जब तक रोगी को डकार नहीं आती या मलद्वार से वायु नहीं निकलती है तब तक रोगी को बेचैनी और पेट में दर्द होता रहता है।*
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गैस रोगी का भोजन और परहेज क्या क्या है
छोटा अनाज, पुराना शालि चावल, रसोन, लहसुन, करेला फल, शिग्रु, पटोल के पत्ते, फल और बथुआ आदि आध्यमान (अफारा) से पीड़ित रोगी इन सभी का प्रयोग खाने में कर सकते हैं।
बंदगोभी, कचालू, अरबी, भिण्डी और ठण्डी चीजें वायुकारक खाद्य पदार्थ हैं, जिसके सेवन करने से पेट में वायु बनती है और अफारा हो जाता है। चावल, राजमा, उड़द की दाल, दही, छाछ, लस्सी और मूली का प्रयोग न करें क्योंकि यह अफारा को अधिक कर देता है। अफारा होने पर कड़वे, तीखे, कषैले, सूखे और भारी अनाज (अन्न), तिल, शिम्बी मांसाहारी भोजन, अप्राकृतिक और विषम आसन, मैथुन, रात में जागना, व्यायाम और क्रोध (गुस्सा) आदि को छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से अफारा रोग होता है।
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