सिद्ध आंत्रवृद्धि नाशक योग

हर्निया से परेशान है तो अपनाएं

सिद्ध आंत्रवृद्धि नाशक योग


सेवन विधि :1 चम्मच चुर्ण 2 गोली आरोग्य वर्धनी
सुबह शाम ताजे पानी से सेवन करे।

⏩ साथ में हर्निया नाशक 2-2 drop 3बार मालिश करे।
⏩ 3 बार धतूरा रस युक्त तेल से हर्निया पर मालिश
करे

नोटः रात एक कप दूध में दो चम्मच जैतून का तेल डालकर एक महीने तक दवा के साथ पिएँ।

⏩ 1 महीने में हर्निया एक दम बैठ जाएगी।

सिद्ध आंत्रवृद्धि नाशक कल्पचुर्ण
नुस्खा
त्रिफला। 100 ग्रा
रोहिनी 50 ग्रा
देवदारू। 50 ग्रा
इन्द्रायण 50 ग्रा
वच 50 ग्रा
समुद्रशोष 50 ग्राम
छोटी हरड़ 100 ग्रा
अजवाइन 100 ग्रा
हींग। 50 ग्रा
मलेठी 100 ग्रा
बरियार 50 ग्रा
सोंठ 100 ग्रा
गोरखमुंडी 100 ग्रा
सफेद खांड 300 ग्रा


सभी को चूर्ण बनाए




आंत का अपने स्थान से हट जाना ही आंत का उतरना कहलाता है। यह कभी अंडकोष में उतर जाती है तो कभी पेडु या नाभि के नीचे खिसक जाती है। यह स्थान के हिसाब से कई तरह की होती है जैसे स्ट्रैगुलेटेड, अम्बेलिकन आदि। जब आंत अपने स्थान से अलग होती है तो रोगी को काफी दर्द व कष्ट का अनुभव होता है।

इसे छोटी आंत का बाहर निकलना भी कहा जाता है। खासतौर पर यह पुरुषों में वक्षण नलिका से बाहर निकलकर अंडकोष में आ जाती है। स्त्रियों में यह वंक्षण तन्तु लिंगामेन्ट के नीचे एक सूजन के रूप में रहती है। इस सूजन की एक खास विशेषता है कि नीचे से दबाने से यह गायब हो जाती है और छोड़ने पर वापस आ जाती है। इस बीमारी में कम से कम खाना चाहिए। इससे कब्ज नहीं बनता। इस बात का खास ध्यान रखें कि मल त्याग करते समय जोर न लगें क्योंकि इससे आंत और ज्यादा खिसक जाती है।


कारण :

कब्ज, झटका, तेज खांसी, गिरना, चोट लगना, दबाव पड़ना, मल त्यागते समय जोर लगाने से या पेट की दीवार कमजोर हो जाने से आंत कहीं न कहीं से बाहर आ जाती है और इन्ही कारणों से वायु जब अंडकोषों में जाकर, उसकी शिराओं नसों को रोककर, अण्डों और चमड़े को बढ़ा देती है जिसके कारण अंडकोषों का आकार बढ़ जाता है। वात, पित्त, कफ, रक्त, मेद और आंत इनके भेद से यह सात तरह का होता है।

लक्षण :
वातज रोग में अंडकोष मशक की तरह रूखे और सामान्य कारण से ही दुखने वाले होते हैं।

पित्तज में अंडकोष पके हुए गूलर के फल की तरह लाल, जलन और गरमी से भरे होते हैं।

कफज में अंडकोष ठंडे, भारी, चिकने, कठोर, थोड़े दर्द वाले और खुजली से भरे होते हैं।

रक्तज में अंडकोष काले फोड़ों से भरे और पित्त वृद्धि के लक्षणों वाले होते हैं।

मेदज के अंडकोष नीले, गोल, पके ताड़फल जैसे सिर्फ छूने में नरम और कफ-वृद्धि के लक्षणों से भरे होते हैं।

मूत्रज के अंडकोष बड़े होने पर पानी भरे मशक की तरह शब्द करने वाले, छूने में नरम, इधर-उधर हिलते रहने वाले और दर्द से भरे होते है। अंत्रवृद्धि में अंडकोष अपने स्थान से नीचे की ओर जा पहुंचती हैं। फिर संकुचित होकर वहां पर गांठ जैसी सूजन पैदा होती है।

भोजन तथा परहेज :

दिन के समय पुराने बढ़िया चावल, चना, मसूर, मूंग और अरहर की दाल, परवल, बैगन, गाजर, सहजन, अदरक, छोटी मछली और थोड़ा बकरे का मांस और रात के समय रोटी या पूड़ी, तरकारियां तथा गर्म करके ठंडा किया हुआ थोड़ा दूध पीना फायदेमंद है। लहसुन, शहद, लाल चावल, गाय का मूत्र गाजर, जमीकंद, मट्ठा, पुरानी शराब, गर्म पानी से नहाना और हमेशा लंगोट बांधे रहने से लाभ मिलता है।

उड़द, दही, पिट्ठी के पदार्थ, पोई का साग, नये चावल, पका केला, ज्यादा मीठा भोजन, समुद्र देश के पशु-पक्षियों का मांस, स्वभाव विरुद्ध अन्नादि, हाथी घोड़े की सवारी, ठंडे पानी से नहाना, धूप में घूमना, मल और पेशाब को रोकना, पेट दर्द में खाना और दिन में सोना नहीं चाहिए।


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