अफस्फीत शिराएं(Varicose veins)


सिद्ध वातदर्द कल्पचुर्ण
अफस्फीत शिराएं(Varicose veins) की कारगर औषधि।
                             
इंद्रयाण अजवाइन 100 ग्राम ,सौंठ भुनी 50 ग्राम ,सोंठ, काली मिर्च और पीपर – 5-5 ग्राम।

पिपरामूल, चित्रकमूल, च्‍वय, धनिया, बेल की जड,
अजवायन, सफ़ेद जीरा, काला जीरा, हल्‍दी, दारूहल्‍दी, अश्‍वगंधा, गोखुरू, खरैटी, हरड़, बहेड़ा, आंवला,शतावरी, मीठा सुरेजान, शुद्ध कुचला, बड़ी इलायची, दालचीनी, तेजपात, नागकेसर 4-4 ग्राम।

योगराज गुग्‍गल 100 को कूटने के बाद बारीक पीस लें और छान कर मिला लें।

दवा तैयार हो गई ।

सेवन विधि -
बड़े लोग-1-1 चम्मच छोटा सुबह-शाम दूध के साथ ले ।
बचों को आधी खुराक दे।

इसका 90 दिन का कोर्स पहली अवस्था मे होता है।
मरीज बिल्कुल ठीक हो जाता है।

अगर रोग 3 से 10 साल पुराना है तो 1 से 3 साल कोर्स चल सकता है।

       इस दवा कोई साइड इफेक्ट्स नही है।

              यह दवा गर्मी नही करती

                          परहेज

 खाद्य पदार्थों की हिदायत ( Food Instructions ) :

 इस तरह के रोग से ग्रस्त रोगी को पिने में नारियल का पानी, खीरे का पानी, गाजर का रस, पालक का रस, पत्तागोभी, आदि का इस्तेमाल करना चाहियें, साथ ही साथ उपवास भी रखें।

आपके लिए हरी सब्जियों का सूप भी बहुत फायदेमंद होता है. इन सब चीजों के सेवन के साथ रोगी को उपवास रखना चाहिये।

इन सब के बाद कुछ दिनों तक रोगी व्यक्ति को फल, सलाद, अंकुरित दालों को ही अपने आहार और खाद्य पदार्थों में शामिल करें।

विटामिन E तथा विटामिन C को पूरी करने वाली चीजें रोगी व्यक्ति को ज्यादा मात्रा में देनी चाहिये।

 रोगी को तला भुना खाने से और ज्यादा नमक मिर्च खाने से कुछ दिनों के लिए परहेज करना चाहिये.

                        ★★★★

                   *जानकारी*

          जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके शरीर की शिराएं (नसें) फैलकर लंबी और मोटी हो जाती हैं।

यह शिराएं (नसें) शरीर की किसी भाग की हो सकती हैं जैसे- मलाशय शिराएं, वृषण शिराएं तथा ग्रासनली शिराएं।

लेकिन यह रोग अधिकतर पैरों को प्रभावित करता है जिसके कारण पैरों की शिराएं लंबी तथा मोटी हो जाती हैं।

 इस रोग का शिकार अधिकतर महिलाएं होती हैं और इस रोग में रोगी का दाहिना पैर, बाएं पैर की अपेक्षा अधिक प्रभावित होता है।

वेरिकोस वेन्स रोग का लक्षण :-

          इस रोग के हो जाने पर रोगी व्यक्ति के पैरों में दर्द के साथ थकान तथा भारीपन महसूस होने लगता है। रोगी के टखने में सूजन हो जाती है।

रात के समय में रोगी के पैरों में ऐंठन होने लगती है। इस रोग से पीड़ित रोगी की त्वचा का रंग बदलने लगता है। इस रोग के कारण स्टैटिस डर्मेटाइटिस तथा शरीर के नीचे के अंगों में सेल्युलाइटिस रोग हो जाता है।

          *वेरिकोस वेन्स रोग होने का कारण*

ये शिराएं वह रक्त वाहिकाएं होती हैं जो रक्त (खून) को हृदय में वापस लाती हैं। इन शिराओं में वॉल्व लगे होते हैं, जिनसे रक्त का एक ही दिशा में संचारण होता है।

 जब ये शिराऐं फैल जाती हैं तो इसके वॉल्व अपना कार्य करना बंद कर देते हैं, जिसके कारण रक्त (खून) उपास्थि शिराओं में जमा होकर, टांग के ऊतकों के बीच में जमने लगता है, जिसके कारण उस भाग पर सूजन हो जाती है और आगे चलकर त्वचा के रंग में परिवर्तन होने लगता है।

 जिसके कारण रोगी व्यक्ति के शरीर में क्षय, एक्जिमा, खून की कमी आदि लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं।
वेरिकोस वेन्स रोग उन व्यक्तियों को हो जाता है जो अधिक देर तक खड़े होकर या बैठकर काम करते हैं।

वेरिकोस वेन्स रोग उन व्यक्तियों को भी हो जाता है जो अधिक वजन उठाने का कार्य करते हैं तथा अधिक वजन वाले व्यक्तियों और महिलाओं को भी वेरिकोस वेन्स रोग हो जाता है।

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