सिद्ध अस्थमा नाशक कल्पचुर्ण- अस्थमा होगा छूमंतर


         


आज के समय में दमा (अस्थमा) तेजी से स्त्री-पुरुष व बच्चों को अपना शिकार बना रहा है। यह रोग धुंआ, धूल, दूषित गैस आदि जब लोगों के शरीर में पहुंचती है तो यह शरीर के फेफड़ों को सबसे अधिक हानि पहुंचाती है। प्रदूषित वातावरण में अधिक रहने से श्वास रोग (अस्थमा) की उत्पत्ति होती है।

         यह श्वसन संस्थान का एक भयंकर रोग है। इस रोग में सांस नली में सूजन या उसमें कफ जमा हो जाने के कारण सांस लेने में बहुत अधिक कठिनाई होती है। दमा का दौरा अधिकतर सुबह के समय ही पड़ता है। यह अत्यंत कष्टकारी है जो आसानी से ठीक नहीं होता है।
आयुर्वेद के अनुसार यह पांच प्रकार का होता है :

1. क्षुद्र श्वांस -रूखे पदार्थों का सेवन करने तथा अधिक परिश्रम करने के कारण जब कुछ वायु ऊपर की और उठती है तो क्षुद्रश्वांस उत्पन्न होती है। क्षुद्रश्वांस में वायु कुपित होती है परन्तु अधिक कष्ट नहीं होता है। यह रोग कभी-कभी स्वत: ही ठीक हो जाता है।

2. तमक श्वास  : इस दमा रोग में वायु गले को जकड़ लेती है और गले में जमा कफ ऊपर की ओर उठकर श्वांस नली में विपरीत दिशा में चढ़ता है जिसे तमस (पीनस) रोग उत्पन्न होता है। पीनस होने पर गले में घड़घड़ाहट की आवाज के साथ सांस लेने व छोड़ने पर अधिक पीड़ा होती है। इस रोग में भय, भ्रम, खांसी, कष्ट के साथ कफ का निकलना, बोलने में कष्ट होना

3. श्वास :इस रोग में रोगी ठीक प्रकार से श्वांस नहीं ले पाता, सांस रुक-रुककर चलती है, पेट फूला रहता है, पेडू में जलन होती है, पसीना अधिक मात्रा में आता, आंखों में पानी रहता है तथा घूमना व श्वांस लेने में कष्ट होता है। इस रोग में मुंह व आंखे लाल हो जाती हैं, चेहरा सूख जाता है, मन उत्तेजित रहता है और बोलने में परेशानी होती है। रोगी की मूत्राशय में बहुत जलन होती है और रोगी हांफता हुआ बड़बड़ाता रहता है।

4. ऊध्र्वश्वास :ऊध्र्वश्वास (सांस को जोर से ऊपर की ओर खिंचना) :
ऊपर की ओर जोर से सांस खींचना, नीचे को लौटते समय कठिनाई का होना, सांसनली में कफ का भर जाना, ऊपर की ओर दृष्टि का रहना, घबराहट महसूस करना, हमेशा इधर-उधर देखते रहना तथा नीचे की ओर सांस रुकने के साथ बेहोशी उत्पन्न होना आदि लक्षण होते हैं।

5. छिन्न श्वास:सांस ऊपर की ओर अटका महसूस होना, खांसने में अधिक कष्ट होना, उच्च श्वांस, स्मरणशक्ति का कम होना, मुंह व आंखों का खुला रहना, मल-मूत्र की रुकावट, बोलने में कठिनाई तथा सांस लेने व छोड़ते समय गले से घड़घड़ाहट की आवाज आना आदि इस रोग के लक्षण हैं। जोर-जोर से सांस लेना, आंखों का फट सा जाना और जीभ का तुतलाना-ये महाश्वास के लक्षण हैं।
इन सभी के लिए एक ही दवा है।आप घर मे इसको आसानी से बना सकते हैं।

अस्थमा की अयूर्वादिक दवा


त्रिफला            50 ग्राम
अजवाइन भुनी 50 ग्राम
सौंठ भुनी         50 ग्राम
गिलोय             50 ग्राम
हल्दी                50ग्राम
चरायता            50 ग्राम
अडूसा             20 ग्राम
लौंग का चूर्ण    20 ग्राम
हरड़ काली       20 ग्राम
अपामार्ग          20 ग्राम
बेरी की छाल    20 ग्राम
नौसादर           20 ग्राम
नागरमोथा       20 ग्राम
तेजपात           10 ग्राम
पीपल             10 ग्राम
बबूल के गोंद    10 ग्राम
काली मिर्च       10 ग्राम
भुनी हुई हींग    10 ग्राम
काला नमक     10 ग्राम
पीपर                5 ग्राम
काकड़ासिंगी    5 ग्राम
पुष्करमूल         5 ग्राम
गंधक का चूर्ण   5 ग्राम
कुलिंजन           5 ग्राम
गुग्गल               5 ग्राम
हरसिंगार           5 ग्राम
जावित्री             5 ग्राम

एलोवेरा रस 200 ग्राम ताजा ले कर सभी अयूर्वादिक जड़ी बूटियों को मिलाकर धुप में सुखा लें।

★★★
सेवन विधि
दिन में 3 बार 1 -1 चमच्च  50 ग्राम गाय  मूत्र 100 ग्राम पानी से ले।
जिदी अस्थमा भी ख़त्म होगा।
यह 90 दिन का कोर्स है।


सिद्ध अयूर्वादिक


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Whats 94178 62263
Email-sidhayurveda1@gmail.com

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1 टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
जी क्या यह योग दवा गोमुत्र से लेना आव१यक है श्रीमन ❓
इस्का पुरा कोर्स कितने दिन का है जी

मूल्य क्या हॅ जी ❓

Whatsapp no. 8053022791